आज को अच्छे से जियें: खुश रहने का सबसे बेहतरीन साधन

मित्रों
अगर आप  मुझसे पूछे की हमारे दुःखो का सबसे बड़ा कारण क्या है ?
तो मैं  कहुँगा की हमारा यथार्थ में न जी पाना ।
सच में  अगर हम  अपने दिन भर के विचारों पर गौर करें तो हम पाएंगे की ज्यादातर हम या तो भूतकाल में जीते हैं  या फिर भविष्य  काल में  जीते हैं ।
उदाहरण के तौर पर
हमारे मस्तिष्क में या तो भविष्य की योजनाओ पर चिंतन चलता रहता है  या फिर हम किसी भूतकाल की घटना को लेकर मंथन करते रहते है ।
और इन दोनों परिस्थितियों में हम आज को जीना भूल जाते हैं जोकि हमारे  लिए  ज्यादा महत्वपूर्ण है । क्योंकि अगर हम आज को बेहतरीन  अंदाज़ में जीते हैं और  आज के अपने सारे उत्तरदायित्वों का सम्पुर्ण निर्वाहन करे तो निश्चित ही हमारा भविष्य  उज्जवल होगा और वर्तमान सही होने पर कुछ दिनों के बाद हमारा मस्तिष्क  अच्छी यादों से भर जाएगा ।
परन्तु  अगर सभी कर्तव्यों का सही से निर्वाहन करने पर भी हमें  सफलता ना मिले तो उस असफलता को वहीं छोड़ दें  न कि हमेशा उसी का रोना रोते रहे और अपनी  आगे की योजनाओ को और बेहतर करने का प्रयास करे ।
अब यहाँ पर सवाल ये  उठता है कि हम आज या अभी में कैसे जीये ?
इस प्रश्न का उत्तर मैं आप सब को  एक कहानी के माध्यम से देने का प्रयत्न करूंगा ।
एक बार  एक गुरु ओर उनका शिष्य यात्रा पर निकले । रास्ते भर गुरु ओर उनके शिष्य ने शास्त्रो पर चर्चा की  और गुरु ने शिष्य को बहुत सी शिक्षाये प्रदान की जैसे कि
1 मोह ओर माया से अपने आप को केसे बचाएँ ।
2 ईश्वर प्राप्ति के लिए कैसे प्रयास करे ।
3 अपने आप को स्त्रियो से  दूर रखे ताकि आप  अपने आप ईश्वर को समर्पित कर सके।
इस तरह चर्चा करते करते वो एक दिन  सायं काल के  समय एक नदी के किनारे पहुंच जाते हैं और  वहां देखते है कि  एक लड़की बैठी हुई  रो रही  है । ये सब देख कर गुरु जी ने अपने शिष्य को कहा कि  इस लड़की से इसके दुःख का कारण पता करो । शिष्य लड़की के पास जाता है  और  रोने का कारण पूछता है तो लड़की  ने उसे बताया कि
जब वह सुबह यहाँ से आई थी तो नदी में  पानी कम था परन्तु  अब नदी का जल स्तर बहुत बड गया है और मैं नदी पार नहीं कर सकी और  अब अगर  ओर देर हुई तो निश्चित ही अंधेरा हो जायेगा  और मैं घर नहीं पहुँच पाऊँगी ।
शिष्य ये सब बातें गुरु को बताते हैं तो गुरु शिष्य को  उसकी मदद करने के लिए कहते हैं  परन्तु शिष्य ऐसा करने से मना कर देता है ।
अब गुरु जी स्वयं ही  उस लड़की को कंधे पर  उठा कर नदी के पार छोड़  आते हैं । शिष्य  ये सब देखकर मन ही मन बहुत कूछ सोचता है परन्तु भय वश कूछ पूछ नहीं पाता ।
अगली सुबह दोनों फिर से आगे के सफर पर निकल जाते परन्तु शिष्य का पूरा ध्यान  उसी घटना क्रम पर लगा रहता है और वो सोचता है कि गुरु जी मुझे तो स्त्री सगं त्यागने के लिए कहते ओर स्वयं उन्होंने क्या किया ?
इस तरह  कई दिन बित गये एक दिन शिष्य से जब रहा ना गया तो वह गुरु जी से बोले कि अगर आप बुरा न मानो तो मैं एक बात पूछना चाहता हूँ । गुरु जी जो उसके भावों को  अच्छी तरह से  जानते थे बोले अवश्य पूछियेगा ।
शिष्य: आप  मुझे तो स्त्री सगं से दूर रहने की शिक्षा देते परन्तु  आप ने  उस दिन  क्या किया  ?
गुरु जी  : हाँ तो  मैंने क्या किया?
शिष्य    : आपने  उस लड़की को कंधे पर उठा कर  उस नदी के पार छोड़ दिया ।
गुरु जी  : हाँ तो मैंने उसे नदी के उस पार छोड़ दिया परन्तु तुम उसे अभी तक  अपने मस्तिष्क  में  धारण किये हुए हो । अब तुम भी उसे  मस्तिष्क से उतार कर जिदंगी में आगे बड़ो ।
शिष्य को  अपनी  सीख मिल गयी ।
तो मित्रों  इसी तरह  हमें  भी अपनी  सफलताओं और असफलताओं को वहीं समय  रूपी नदी के किनारे पर छोड़ कर जिदंगी में आगे बढ़ना चाहिए ।

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धन्यवाद

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